वनवासी समुदाय अब निश्चिंत होकर कर सकेगा खेती-बाड़ी

मध्यप्रदेश भारत का सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाला राज्य है। प्रदेश की कुल आबादी में से करीब 21 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदाय की है। इस प्रकार देखा जाये, तो प्रदेश में हर पाँचवा व्यक्ति आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है। आदिवासी समुदाय लम्बे समय से वन भूमि में निवास कर खेती एवं उससे जुड़े रोजगार के व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। राज्य के आदिवासी समुदाय को समाज एवं विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये राज्य सरकार द्वारा संवेदनशील रूख अपना कर उनके उत्थान के लिये ऐसे कदम उठाये गये है, जिससे उनके आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक विकास का मार्ग प्रशस्त हो रहा है।


प्रदेश के 89 आदिवासी बाहुल्य विकासखंडों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिये यूं तो राज्य सरकार ने अनेक जन-कल्याणकारी योजनाएँ संचालित की हुई हैं, जिनका सफल क्रियान्वयन कर आदिवासी भाइयों को लाभान्वित किया जा रहा है। वनों में लम्बे समय से रहने वाले वनवासियों की सबसे बड़ी समस्या उनके आवास स्थल और खेती-बाड़ी की जमीन की रही है। प्रदेश में रहने वाले वनवासियों में एक बड़ा हिस्सा आदिवासी समाज का वन क्षेत्रों में पारम्परिक रूप से रहता आया है। आदिवासी परिवारों को हमेशा से यह डर सताता रहा है कि जिस भूमि पर वे वर्षों से काबिज रहे है, उस भूमि पर उनका मालिकाना हक न होने से वे कभी भी बेदखल किये जा सकते हैं। वन क्षेत्रों में रहने वाले ऐसे आदिवासी समाज के लोगों के लिये प्रदेश सरकार ने नई पहल करते हुए उनके जीवन में रोशनी की उम्मीद जगाई है, जो उनकी आगे आने वाली पीढ़ी को भी प्रकाशमान करती रहेगी।


मध्यप्रदेश में चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही श्री शिवराज सिंह चौहान ने गरीब एवं बेसहारा लोगों की प्राथमिकता के साथ सुध ली। चाहे मजदूर हो, काम-काज करने वाला वर्ग, पिछड़ी जन-जाति की महिलाएँ प्रवासी मजदूर, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र की महिलाओं और गरीब तबके को हर संभव मदद उपलब्ध करवाई गई है। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने प्रदेश के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समाज के 23 हजार लोगों को वनाधिकार पट्टा देकर उनके जीवन को एक नई दिशा दी है। मध्यप्रदेश में वनाधिकार उत्सव आयोजित कर ऐसे आदिवासी भाई-बहनों की चिंताओं का स्थाई समाधान किया गया है, जो वर्षों से उनको सता रही थीं। प्रदेश में तय समय-सीमा में अभियान चलाकर किये गये सर्वे में पात्र ऐसे वनवासियों को उनके कब्जे वाली भूमि का मालिकाना हक सौंपा गया, जहाँ वे वर्षों से रह रहे थे।